डेडीकेशन क्या है? कमिटमेंट किसे कहते हैं? जानते हैं आप? नहीं, जानते....आइये, मैं बताता हूँ....एक महान चेरेक्टर की एक कहानी के साथ..... तो एक हमान मार्सियल आर्टिस्ट थे, जरेश पोशी....जितने हमान वो टर्टिस्ट थे उतने ही भारहीन कंटेंट क्रिएटर भी.... एक दिन अपने अथाह पौरुषके प्रदर्शन हेतु उन्होंने एक वारांगना को हायर किया....अपना कैमरा चलाकर उसे निर्वस्त्र होने का आदेश दिया....केजरीवालसम, धोकेसे, एक नारियल उठाकर उस पणस्त्रीके पैर पर दे मारा.... लगते ही वो मंजिका गुजरातीमे चिल्लाई .... "आह, साव गधेड़ा जेवो छे नालायक" और बोहत से विशेषणों से हमारे केजरीकुमार जी का अभिषेक किया... बोहत माफियों और कुछ रुपयोंसे सन्तिष्ठ हो वह लटी आगेके कार्यक्रम को राजी हुईं....परंतू केमेरा रखवा दिया.... कुछ एक आध मिनट बाद पोशी जी गणिकाको श्वानमुद्रामे लाये और किसी अगम्य स्थानसे छोटासा कैमरा फिर निकला... एंगल ऐसा सेट किया की उस भोग्या के बालों और पीठसे होते हुए जरेशजीकी मोटी तोंद और उपरका भाग दिख रहा था, निचे क्या मामला है उन्होंने छुपाये रखा और एक धक्का रिकॉर्ड किया.... बादमें उनके सोसिअल मीडिया अकाउंट पर...
In 1998, I started reading poetry. Subsequently, I started to write poems & plays. The notebook I used then had become my constant companion and a personal talisman. Every time I open that notebook, I get to relive the memory of the day I wrote each page. Finally, the notebook exhausted its pages and Google came to my rescue. Yes, this public blog is to connect and share my thoughts with whoever happens to read but mainly it is for me, as a personal talisman.